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Product Description
‘‘सुनो पुरुष! तुमने कभी जाना है एक स्त्री परछाईं में बदलकर अवसन्न अँधेरे में क्यों खो जाती है? क्या तुम कभी महसूस कर सकोगे, तुमने कब किसी स्त्री को पीड़ाओं के संगम-स्थल में बदल दिया? नहीं, तुम कभी नहीं मानोगे कि तुम कहीं ग़लत हो सकते हो। क्या कहूँ इसे? मिथ्याभिमान, पुरुषोचित दंभ?’
’‘‘कोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के तीन आरोपियों की सज़ा स्थगित कर दी है, लड़की पर व्यभिचारिणी होने का आरोप लगाकर! हमारे समय से लेकर अब तक कुछ भी तो नहीं बदला!’’
‘‘क्या मेरी कमाई न होना मेरे मूल्यांकन का मुख्य आधार है? एक मित्र कितनी बार कह देता है कि ‘तुम करती ही क्या हो घर में? धन तुम्हारे पति कमाते हैं। तुम धनी हो तो सिर्फ़ अपने पति की वजह से। तुम्हारा न समाज में कोई योगदान है न स्वयं के जीवन में।’ ’’
2020 में ‘कृष्ण प्रताप कथा सम्मान’, 2019 में ‘स्पंदन कृति सम्मान’ पाने वाली दिव्या विजय समकालीन कथा साहित्य में उभरती और समर्थ हस्ताक्षर हैं। संसार को देखने का उनका एक बेहद संवेदनशील नज़रिया है जो दराज़ों में बंद ज़िंदगी से गुज़रते हुए देखने को मिलता है। महज़ तीन साल की यह डायरी हमारे समाज पर कई बड़े और तीखे सवाल उठाती है जो लम्बे समय तक पाठक के मन को झकझोरते रहते हैं।
Product Details
Title: | Darazon Mein Band Zindagi (Hin) |
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Author: | Divya Vijay |
Publisher: | Rajpal and Sons |
SKU: | BK0495036 |
EAN: | 9789389373684 |
Number Of Pages: | 240 |
Language: | Hindi |
Binding: | Paperback |
Release date: | 20 February 2024 |