Product Description
वर्ष 1950-60 के दशक में भारत की जिस पीढ़ी ने अपनी उम्र का पहला डेढ़ दशक पूरा किया था, उनमें से आज का कोई वरिष्ठ नागरिक ऐसा नहीं होगा, जिसने बचपन में साने गुरुजी की मराठी में लिखी ‘श्यामची आई’ पुस्तक पढ़ी नहीं होगी। साने गुरुजी के ‘श्यामची आई’और ‘मीरी’ जैसे मराठी में लिखे उपन्यास पढ़कर जिसकी आँखें नम न हुई हों, ऐसे व्यक्ति कम ही होंगे। बेहद सरल, मार्मिक, दिल को छू लेनेवाली भाषा साने गुरुजी की विशेषता है। कहा जा सकता है कि माँ की प्रेममय और महान् सीख का सरल, सहज और सुंदर शब्दों में किया गया चित्रण, हमारी संस्कृति का एक अनुपमेय कथात्मक चित्र, एक कारुणिक कथावस्तु यानी ‘श्याम की माँ’. खुद गुरुजी कहते हैं कि मन का पूरा अपनापन मैंने इस कथा में उडे़ला है। ये कहानियाँ लिखते हुए सौ बार मेरी आँखें नम हुईं। दिल भर आया। मेरे हृदय में माँ के बारे में जो अपार प्रेम, भक्ति और कृतज्ञता का भाव है, वह ‘श्याम की माँ’ पढ़कर अगर पाठकों के मन में भी उत्पन्न हो तो कहा जा सकता है कि यह कृति लिखना सार्थक हुआ। अपने बच्चों से अपार प्रेम करनेवाली, वे सुंसस्कारी बनें, इसलिए जी-जान से कोशिश करनेवाली, लेकिन संस्कारों की अमिट छाप उपदेश रूपी दवा की खुराक के रूप में नहीं, बल्कि अपने बरताव से और रोजमर्रा के छोटे-छोटे प्रसंगों के जरिए बच्चों के मन पर छोड़नेवाली, अनुशासन का महत्त्वाच बताते हुए प्रसंगानुसार कठोर बनानेवाली यह आदर्श माँ आज की उदयोन्मुख पीढ़ी के लिए ही नहीं, वरन् उनके माता-पिता के लिए भी निश्चित रूप से प्रेरक साबित होगी।.
Product Details
Title: | Shyam Ki Maa (Hin) |
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Author: | Sane Guruji |
Publisher: | Prabhat Prakashan; First Edition |
ISBN: | 9789351863960 |
SKU: | BK0480491 |
EAN: | 9789351863960 |
Number Of Pages: | 232 pages |
Language: | Hindi |
Place of Publication: | India |
Binding: | Paperback |
Reading age : | 18 years and up |