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कुंतो भीष्म साहनी का यह उपन्यास ऐसे कालखंड की कहानी कहता है जब लगने लगा था कि हम इतिहास के किसी न... Read More

Product Description

कुंतो भीष्म साहनी का यह उपन्यास ऐसे कालखंड की कहानी कहता है जब लगने लगा था कि हम इतिहास के किसी निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं, जब करवटें लेती ज़िंदगी एक दिशा विशेष की ओर बढ़ती जान पड़ने लगी थी। आपसी रिश्ते, सामाजिक सरोकार, घटना-प्रवाह के उतार-चढ़ाव उपन्यास के विस्तृत फलक पर उसी कालखंड के जीवन का चित्र प्रस्तुत करते हैं। केन्द्र में जयदेव-कुंतो-सुषमा-गिरीश के आपसी संबंध हैं - अपनी उत्कट भावनाओं और आशाओं-अपेक्षाओं को लिये हुए। लेकिन कुंतो-जयदेव और सुषमा-गिरीश के अन्तर संबंधों के आस-पास जीवन के अनेक अन्य प्रसंग और पात्र उभरकर आते हैं। इनमें हैं प्रोफेष्स्साब जो एक संतुलित जीवन को आदर्श मानते हैं और इसी ‘सुनहरी मध्यम मार्ग’ के अनुरूप जीवन को ढालने की सीख देते हैं; हीरालाल है जो मनादी करके अपनी जीविका कमाता है, पर उत्कट भावनाओं से उद्वेलित होकर मात्र मनादी करने पर ही संतुष्ट नहीं रह पाता; हीरालाल की विधवा माँ और युवा घरवाली हैं; सात वर्ष के बाद विदेश से लौटा धनराज और उसकी पत्नी हैं; सहदेव है। ऐसे अनेक पात्र उपन्यास के फलक पर अपनी भूमिका निभाते हुए, अपने भाग्य की कहानी कहते हुए प्रकट और लुप्त होते हैं। और रिश्तों और घटनाओं का यह ताना-बाना उन देशव्यापी लहरों और आंदोलनों की पृष्ठभूमि के सामने होता है जब लगता था कि हमारा देश इतिहास के किसी मोड़ पर खड़ा है। पर यह उपन्यास किसी कालखंड का ऐतिहासिक दस्तावेज न होकर मानवीय संबंधों, संवेदनाओं, करवट लेते परिवेश और मानव नियति के बदलते रंगों की ही कहानी कहता है।

Product Details

Title: Kunto
Author: Bhishm Sahni
Publisher: Rajkamal Prakashan
ISBN: 9788126714698
SKU: BK0335050
EAN: 9788126714698
Language: Hindi
Binding: Paperback
Reading age : All Age Groups

About Author

जन्म : 8 अगस्त, 1915 को रावलपिंडी (पाकिस्तान) में। शिक्षा : हिन्दी-संस्कृत की प्रारम्भिक शिक्षा घर में। स्कूल में उर्दू और अंग्रेजी। गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए., फिर पंजाब विश्वविद्यालय से पी-एच.डी.। बँटवारे से पूर्व थोड़ा व्यापार, साथ-ही-साथ मानद (ऑनरेरी) अध्यापन। बँटवारे के बाद पत्रकारिता, इप्टा नाटक मंडली में काम, बंबई में बेकारी। फिर अम्बाला में एक कॉलेज में तथा खालसा कॉलेज, अमृतसर में अध्यापन। तत्पश्चात् स्थायी रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में साहित्य का प्राध्यापन। इस बीच लगभग सात वर्ष 'विदेशी भाषा प्रकाशन गृह’, मॉस्को में अनुवादक के रूप में कार्य। अपने इस प्रवासकाल में उन्होंने रूसी भाषा का यथेष्ट अध्ययन और लगभग दो दर्जन रूसी पुस्तकों का अनुवाद किया। करीब ढाई साल 'नई कहानियाँ’ का सौजन्य-सम्पादन। प्रगतिशील लेखक संघ तथा अफ्रो-एशियाई लेखक संघ से सम्बद्ध। प्रकाशित पुस्तकें : भाग्यरेखा, पहला पाठ, भटकती राख, पटरियाँ, वाङ्चू, शोभायात्रा, निशाचर, पाली, डायन (कहानी-संग्रह), झरोखे, कड़ियाँ, तमस, बसंती, मय्यादास की माड़ी, कुंतो, नीलू नीलिमा नीलोफर (उपन्यास), माधवी, हानूश, कबिरा खड़ा बज़ार में, मुआवजे, सम्पूर्ण नाटक (दो खंडों में) (नाटक), आज के अतीत (आत्मकथा), गुलेल का खेल (बालोपयोगी कहानियाँ)। सम्मान : अन्य पुरस्कारों के अलावा तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा हिन्दी अकादमी, दिल्ली का शलाका सम्मान। साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य रहे। निधन : 11 जुलाई, 2003

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